सोमवार, 10 फ़रवरी 2014

ज़रूरत से ज़्यादा कमाने वाले

ज़रूरत  से  ज़्यादा  कमाते  हैं
कुछ  लोग
अपनी  वास्तविक  ज़रूरतों  से
बहुत  ज़्यादा
अपने  घर-परिवार  और  क़ुनबे  की
ज़रूरतों
स्वयं  अपनी  आशाओं
माता-पिता  के  स्वप्नों  
और  अपनी  तनख़्वाह  से  भी
कई  गुना  ज़्यादा  !

वे  जितना  कमाते  हैं
उससे  ज़्यादा  ख़र्च  करते  हैं
ऋण  ले-ले  कर
फिर  चुकाने  के  लिए 
और  ज़्यादा  कमाते  हैं 

कभी  रिश्वत  से 
कभी  कमीशन  से

उनके  दफ़्तर  में  पोस्टर  लगा  होता  है
'रिश्वत  लेना  और  देना
दोनों  अपराध  हैं !'

वे  नहीं  मानते  क़ानूनों  को
वे  नहीं  डरते  समाज  की  निंदा  से
वे  पकड़े  भी  जाते  हैं  रंगे  हाथ
तो  उनका  बाज़ार-मूल्य  बढ़  जाता  है  !

वे  अपनी  अतिरिक्त  कमाई  का
कुछ  हिस्सा
नियमित  रूप  से  चढ़ाते  हैं
तिरुपति  और  शिर्डी  के  भगवानों  को
और  अपने  से  ऊंचे अफ़सरों  को  !

उनके  बच्चे 
मंहगे  पब्लिक  स्कूलों  में  पढ़ते  हैं
देश  और  विदेश  में
और  बड़े  हो  कर 
अफ़सर,  उद्योगपति,
बड़े  व्यापारी  बनते  हैं  
अपने  माता-पिता  से  भी  ज़्यादा
कमाने  लगते  हैं....

न्याय-अन्याय,  उचित-अनुचित,  पाप-पुण्य,
अपराध  और  दण्ड
किसी  बात  का  भय  नहीं  होता
उन्हें  ...

वे  हमारे  महान  देश  की 
महान  प्रतिभाएं  हैं
संसार  के  योग्यतम  व्यक्ति...

यही  हैं  वे  लोग
जो  आम  आदमी  के 
ख़ून  के  प्यासे  हैं 
इन्हीं  का  राज  चलता  आया  है
कई  शताब्दियों  से !

यही  हैं  वे  लोग
जो  ज़रूरत  से  ज़्यादा  कमाते  हैं
और 
जिनकी  क़ौम  को  नष्ट  करने  की
क़सम  खाई  है  हमने  !

                                                          ( 2014 )

                                                    -सुरेश  स्वप्निल

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