शनिवार, 26 अप्रैल 2014

कुछ देर का दृष्टिबंध ...

मदारी  बहुत  ख़ुश  है 
आजकल
उसकी  हर  युक्ति  काम  कर  रही  है
उदाहरण  के  लिए, 
वह  हवा  में  हाथ  हिलाता  है
और  हाथी  प्रकट  हो  जाता  है

वह  देखते  ही  देखते 
मजमे  की  जगह  पर
कुछ  भी  साक्षात  कर  दिखाता  है
एक  बार
उसने  लाल  क़िला  ला  खड़ा  किया
दूसरी  बार  संसद  भी 
वह  तो  व्हाइट  हाउस  भी  ले  आता
मगर  अनुमति  नहीं  मिली
वॉशिंग्टन से ...

मदारी  बहुत  ख़ुश  है
अपने  सहायकों  से
वे  हर  असंभव  को  संभव 
करके  दिखा  रहे  हैं
यहां  तक  कि
विरोधियों  के  घर  में 
सेंध  मारना  भी  !

दुर्भाग्य  यह  है
कि  कुछ  भी  यथार्थ  नहीं  है
उसके  खेल  में
वह  जानता  है
कि  सम्मोहन  टूटते  ही
सारे  दर्शक
लौट  जाएंगे  अपने-अपने  घर
और  फिर  पलट  कर
देखेंगे  तक  नहीं 
मदारी  की  तरफ़  !

यह  दिहाड़ी  वाला  मामला  है,  मित्र  !
दिहाड़ी  ख़त्म  तो  दर्शकों  की 
आस्थाएं  भी  ख़त्म
चीख़ने-चिल्लाने  की  शक्ति  भी
आख़िर  मज़दूर  क्यों  बेचे 
अपना  सारा  जीवन 
ठेकेदार  के  हाथों
वह  भी 
सिर्फ़  कुछ  दिहाड़ियों  के  लिए  ?

मदारी  जानता  है
कि  यह  सिर्फ़  धोखा  है
नज़र  का
मात्र  कुछ  देर  का  दृष्टिबंध ...

कहीं  कोई  तो  है
जो  मदारी  से  करवा  रहा  है
ये  सारे  तिलिस्म
सारे  मायाजाल ...

सारे  मंत्र  चुक  जाते  हैं
सारे  भूत-प्रेत  लौट  जाते  हैं
सारे  सहायक  वापस  चले  जाते  हैं
अपनी-अपनी  पुरानी  नौकरियों  पर  !

मदारी  यदि  समय  रहते
नहीं  कर  पाया
वह  सब
जो  उस  पर  पैसा  लगाने  वाले
चाहते  हैं
उसके  माध्यम  से  करवा  लेना
तो  पता  नहीं, 
क्या  होगा  इस  ग़रीब  का  !

                                                                   ( 2014 )

                                                            -सुरेश  स्वप्निल

...

कोई टिप्पणी नहीं: