रविवार, 5 जनवरी 2014

क्या सोचा आपने ?

इतना  सरल  भी  नहीं
समय  की  दिशा  और  रफ़्तार
बदल  पाना
कि  चंद  नारे  उछाले
और  हो  गया !

बहुत-कुछ  झेलना
और  भोगना  पड़ता  है
समय  बदलने  के  लिए
बहुत-से  अन्याय  और  अत्याचारों  से
निबटना
शासक-वर्ग  के  निशाने  पर  आना
और  घर-बार  भूल  कर
पूरी  चेतना  और  ऊर्जा
संघर्ष  में  झोंक  देना  …

यदि  आपको
कपड़े  मैले  हो  जाने  का
भय  न  सताता  हो
दूसरों  के  दुःख-दर्द  को
अपना  बना  लेना  आता  हो
यदि  आपको  शोषण  का  वास्तविक  अर्थ
समझ  आता  हो
यदि  आपको  इतिहास  की  सही-सही
जानकारी  हो
यदि  आपको  अपने  पूर्वजों  पर  हुए
अत्याचारों  से
अपनी  और  अपनी  भावी  पीढ़ी  को
बचाना  कर्त्तव्य  लगता  हो
तो  स्वागत  है  आपका
उन  योध्याओं  की  जमात  में
जो  लगे  हैं  समय  को
मनुष्य  के  अनुकूल  दिशा
और  गति  देने  में  …

तो
क्या  सोचा  आपने
समय  को  बदलने  के  बारे  में ???

                                                 ( 2014 )

                                          -सुरेश  स्वप्निल 

 …

कोई टिप्पणी नहीं: